सूत्र : छत्तीसगढ़ में कांग्रेस-BJP लग सकता है सबसे तगड़ा झटका।

सूत्र : छत्तीसगढ़ में कांग्रेस-BJP लग सकता है सबसे तगड़ा झटका।

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छत्तीसगढ़ में हाल में बना अजीबोगरीब और दिलचस्प राजनीतिक गठबंधन अगर राज्य के मतदाताओं को पसंद आ जाता है, तो आगामी विधानसभा चुनाव जीतने के बीजेपी और कांग्रेस के मंसूबों पर पानी फिर सकता है।

छत्तीसगढ़ में हाल में बना अजीबोगरीब और दिलचस्प राजनीतिक गठबंधन अगर राज्य के मतदाताओं को पसंद आ जाता है, तो आगामी विधानसभा चुनाव जीतने के बीजेपी और कांग्रेस के मंसूबों पर पानी फिर सकता है।

बीजेपी ने राज्य विधानसभा चुनावों में लगातार तीन बार जीत हासिल की है। इस राजनीतिक गठबंधन में हाल में बनी पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी), बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) शामिल हैं।

छत्तीसगढ़ लंबे समय तक कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। यहां तक कि अविभाजित मध्य प्रदेश में भी पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें इसी क्षेत्र से मिलती थीं।

छत्तीसगढ़ को साल 2000 में मध्य प्रदेश से काटकर अलग राज्य बनाया गया और अजीत प्रमोद कुमार जोगी राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने। ब्यूरोक्रेट से राजनेता बने जोगी उस वक्त कांग्रेस पार्टी का हिस्सा थे।

उनके मुख्यमंत्री का तीन साल का कार्यकाल बेहद उतार-चढ़ाव भरा रहा और यह जाति आधारित राजनीति की तरफ मुड़ गया। इसके परिणामस्वरूप, जनता के बीच इस सरकार को लेकर नाराजगी के कारण 2003 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी सत्ता में आ गई। इसके बाद से लगातार 15 साल से बीजेपी रमन सिंह की अगुवाई में यहां शासन कर रही है।

जोगी और उनके बेटे अमित को दो साल पहले पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में कांग्रेस से अलग होना पड़ा। इसके तुरंत बाद जोगी ने राष्ट्रीय नजरिये के साथ क्षेत्रीय इकाई- जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जेसीसी) बनाई। आज वह बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए चुनौती की तरह है। हालांकि, दोनों पार्टियां ऐसा मानने को तैयार नहीं हैं।

कांग्रेस के नेता अजीत जोगी की इस पार्टी को बीजेपी की ‘बी-टीम’ करार देते हैं, जबकि बीजेपी का कहना है कि जोगी की पार्टी यानी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ राज्य विधानसभा चुनावों में किसी तरह का प्रभाव पैदा नहीं कर पाएगी।

बहरहाल, जोगी काफी तरकीब के साथ अपना चुनावी गेम खेल रहे हैं और उन्होंने मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और सीपीआई के साथ गठबंधन किया है। यह गठबंधन दो प्रमुख पार्टियों की संभावनाओं को बिगाड़ सकता है।

इस चुनाव में जेसीसी और बीएसपी ने 55:35 के अनुपात में सीटों का बंटवारा करने का फैसला किया है। इसके तहत ज्यादा सीटें जेसीसी को मिलेंगी और चुनाव में जीत हासिल करने के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी भी उसे ही मिलने की बात है। दोनों का गठबंधन 15 सीटों पर काफी प्रभावकारी हो सकता है और यह संख्या छत्तीसगढ़ में सरकार गठन का रुख बदलने के लिए पर्याप्त है।

जोगी ने हाल में चुनावी मुकाबले से भी हटने का भी ऐलान किया था। उन्होंने कहा था कि वह अब सिर्फ 90 सीटों पर गठबंधन के चुनाव अभियान पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे।

इससे पहले उन्होंने रमन सिंह को उनके घरेलू क्षेत्र राजनांदगांव में खुले मुकाबले के लिए चुनौती दी थी। हालांकि, सोमवार तक इस बात को लेकर भी अटकलें तेज हो गई थीं कि जोगी अपने पुराने रुख से पलट सकते हैं, क्योंकि पारंपरिक तौर पर उनका गढ़ माने जाने वाले मरवाही क्षेत्र के लोगों ने उनसे संपर्क कर नामांकन भरने को कहा है।

2013 के चुनावी गणित को ध्यान में रखें तो बीएसपी की 11 विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक मौजूदगी है और इन सीटों पर उसका वोट शेयर 1 से 30 फीसदी तक है। फिलहाल राज्य में पार्टी के एकमात्र विधायक केशव चंद्रा हैं, जिन्हें एक बार फिर से जैजैपुर से उम्मीदवार बनाया गया है।

काफी समय पहले यानी 2003 में बीएसपी ने विधानसभा चुनाव में दो सीटों पर जीत हासिल की थी-सारनगढ़ (अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित) से कामदा झोले और मालखरौदा से लालसे खुंटे को विधानसभा चुनावों में विजय मिली थी। इसके बाद फिर 2008 में इसने दो विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की। इनमें अकलतरा और पामगढ़ विधानसभा सीटें शामिल थी।

अकलतरा से सौरभ सिंह विधायक चुने गए थे, जबकि पामगढ़ से दुजराम बौद्ध को जीत मिली थी। इस चुनाव में बीजेपी को 50 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस को 38 सीटों पर जीत हासिल हुई थी।

सौरभ सिंह 2013 में बीएसपी छोड़कर कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। झोले को पार्टी विरोधी गतिविधियों के मामले में बीएसपी से निष्कासित कर दिया।

पारंपरिक तौर पर बात करें तो जोगी के समर्थक बीजेपी की तरफ आकर्षित होते रहे हैं, लेकिन जेसीसी के इस बार सक्रिय होने के कारण ऐसी सभी वोट उनकी पार्टी की तरफ शिफ्ट होने के आसार हैं। इसका प्रभाव बीजेपी और कांग्रेस के वोट बैंक पर पड़ेगा। दरअसल, पिछले चुनावों में दोनों पार्टियों के वोट का अंतर 1 फीसदी से भी कम था।

छत्तीसगढ़ की मरवाही और कोटा सीटों पर जोगी के परिवार का ही काफी प्रभाव रहा है। जोगी के बेटे अमित मरवाही सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे, जबकि उनकी पत्नी रेणु ने कोटा से जीत हासिल की थी। अमित अब जोगी की पार्टी जेसीसी के साथ हैं, लेकिन रेणु ने फिर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है।

कांग्रेस के दो मौजूदा विधायक- बिल्हा विधानसभा क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले सियाराम कौशिक और गुंडरदेही विधानसभा क्षेत्र के आर के राय अब जोगी के साथ हैं। हालांकि, उनकी बहू ऋृचा जोगी बीएसटी के टिकट पर अकलतरा से चुनाव मैदान में हैं। चंद्रपुर से जेसीसी की पूर्व उम्मीदवार गीतांजलि पटेल भी कुछ दिनों पहले बीएसपी में शामिल हो गई थीं और उनका पार्टी का टिकट बरकरार रखा गया है।

बहरहाल, छत्तीसगढ़ का चुनावी इतिहास बताता है कि उम्मीदवार अगर जन नेता नहीं हैं, तो उनके चुनाव जीतने की संभावना बेहद कम होती है।

जोगी ने बीते रविवार को राज्य विधानसभा चुनाव के लिए सीपीआई से गठबंधन का ऐलान किया। दक्षिणी बस्तर-दंतेवाड़ा और कोंता में लेफ्ट पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए दो सीटें मिली हैं। इन दोनों सीटों पर पार्टी का पहले से काफी प्रभाव है।

पूर्व विधायक और सीपीआई के मनीष कुंजम कोंता सीट पर राज्य विधानसभा में विपक्ष के उप-नेता और कांग्रेस के मौजूदा विधायक कवसी लखमा के खिलाफ कोंता विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ेंगे।

सीपीआई के केंद्रीय नियंत्रण कमीशन सचिव सी आर बख्शी ने बताया कि पार्टी बाकी सीटों पर भी अपने उम्मीदवार पेश करेगी, मसलन जगदलपुर, कोंडागांव केशकल आदि।

साथ ही, इन सीटों पर उसे गठबंधन का भी समर्थन मिलेगा। इन सीटों और दंतेवाड़ा के लिए पहले ही उम्मीदवारों का ऐलान हो चुका है। चुनाव के लिए जांगगीर-चंपा जिले पर भी विचार हो रहा है।

गठबंधन में छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा भी शामिल हो सकता है, जिनके अध्यक्ष जनक लाल ठाकुर ने सीपीआई नेताओं के साथ बातचीत होने के बारे में पुष्टि की है।

उन्होंने उम्मीद जताई कि गठबंधन को लेकर अंतिम फैसला जल्द लिया जाएगा। बीएसपी सुप्रीमो मायावती की योजना राज्य में करीब 6 जन सभाएं करने की है। दो सभाएं 4 नवंबर को डोंगरगढ़ और भिलाई में होंगी। इन सभाओं में सीपीआई के स्टार प्रचारक टी राजा भी शामिल होंगे।

अमित जोगी ने उम्मीद जताई कि क्षेत्रीय पार्टी जेसीसी की अगुवाई वाला उनका गठबंधन लोगों के बीच अपनापन का भाव पैदा करने में सफल रहेगा। अमित का कहना था कि उनके पिता का दलित, मुसलमान और ईसाइ समुदाय के लोगों के बीच समर्थन है और गठबंधन से संबंधित तीनों पार्टियां काडर आधारित हैं जिसका गरीबों और वंचितों से सीधा जुड़ाव है। उनके मुताबिक, इसके अलावा ये पार्टियां स्थानीय आकांक्षाओं को भी बखूबी समझती हैं।

अपने घोषणा पत्र के रूप में अजीत जोगी पहले उन 12 कार्यों के बारे में एक हलफनामा पेश कर चुके हैं, जो वह सत्ता में आने पर करेंगे। जोगी का यह भी कहना था कि वोटरों के वादों को लेकर किसी भी अन्य राजनीतिक पार्टी के पास स्पष्टता नहीं है, क्योंकि उन्हें फैसले लेने के लिए नई दिल्ली की तरफ देखना पड़ता है।

हालांकि, जेसीसी के पास इस तरह की कोई मजबूरी नहीं है। बीजेपी के राज्य महासचिव संतोष पांडे ने माना कि जेसीसी-बीएसपी-सीपीआई गठबंधन का अनुसूचित जाति बहुल करीब 11-12 जिलों में प्रभाव है।

उनके मुताबिक, मुख्य तौर पर इस गठबंधन का प्रभाव जांजगीर-चंपा इलाके और बिलासपुर समेत बस्तर क्षेत्र की वामपंथ समर्थक तीन सीटों पर है। उन्होंने कहा, ‘गठबंधन इन जीतने लायक सीटों पर अपना ध्यान केंद्रित करेगा। हालांकि, इसका बीजेपी पर ज्यादा असर नहीं होगा।’

आम आदमी पार्टी ने भी राज्य के राजनीति दायरे में काफी ‘धूम-धड़ाके’ के साथ एंट्री की है। यह पार्टी बीजेपी और कांग्रेस दोनों का बेहतर विकल्प होने का दावा कर रही है।

आम आदमी पार्टी के छत्तीसगढ़ प्रभारी गोपाल राय पहले ही बीएसपी-जेसीसी-सीपीआई गठबंधन को डूबता हुआ जहाज बता चुके हैं। जाहिर तौर पर पार्टी छत्तीसगढ़ में नई दिल्ली जैसा प्रदर्शन दोहराने की उम्मीद कर रही है।

हालांकि, कर्नाटक विधानसभा चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन को ध्यान में रखते हुए कुछ कहा जाए, तो राज्य में उसका खाता खुलना भी उसके लिए एक उपलब्धि होगी।