जानिए कैसे बना एक आम आदमी ‘पानी बाबा’।

जानिए कैसे बना एक आम आदमी ‘पानी बाबा’।

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एक और जहां दुनिया पानी की समस्या से जूझ रही है। वहीं दूसरी ओर एक आम इंसान ने बेहद सराहनीय काम किया है। ‘पानी बाबा’ के नाम से मशहूर इस शख्स ने एक हजार गांवों में जल की कमी को दूर किया है।

इस शख्स का नाम राजेंद्र सिंह ने वर्षा का जल रोकने के लिए 6,500 जोहड़ बनाये। इससे अलवर और उसके पास के सात जिलों में जलस्तर 60 से 90 फुट तक उठ गया।

(जन्‍मदिन-6अगस्‍त, 1956) इन दिनों विश्व पानी की समस्या से जूझ रहा है। लोग आवश्यकता से अधिक पानी प्रयोग कर रहे हैं।
अत्यधिक भौतिकता के कारण पर्यावरण को क्षति पहुंच रही है।

हिमनद सिकुड़ रहे हैं और गंगा-यमुना जैसी पानी से भरी रहने वाली नदियां आज सूखने के कगार पहुचं चुकी हैं। ऐसे में कुछ समाजशास्त्रियों का मत है कि अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए होगा।

राजेंद्र सिंह छात्र जीवन में ही जयप्रकाश नारायण के विचारों से प्रभावित थे। उन्होंने 1975 में राजस्थान विश्वविद्यालय परिसर में हुए अग्निकाण्ड के पीड़ितों की सेवा के लिए ‘तरुण भारत संघ’ का गठन किया।

एक बार जब वे अलवर के एक गाँव में भ्रमण कर रहे थे, तो एक वृद्ध ने इन्हें चुनौती देते हुए कहा कि ग्राम विकास करना है, तो बातें छोड़कर गेंती और फावड़ा पकड़ो। गांव की सहायता करनी है तो गांव में पानी लाओ।

ऐसी समस्याओं की ओर अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं का ध्यान गया। उनमें से एक हैं ‘पानीबाबा’ के नाम से प्रसिद्ध राजेंद्र सिंह, जिनका जन्म जिला बागपत (उत्‍तर प्रदेश) के एक गांव में छह अगस्त, 1956 को हुआ। उन्होंने आयुर्वेद में स्नातक तथा हिंदी में एमए किया। नौकरी के लिए वे राजस्थान गए, पर नियति ने इन्हें अलवर जिले में समाजसेवा की ओर मोड़ दिया।

उन्होंने फावड़ा उठाया और काम में जुट गए। धीरे-धीरे उनके पीछे युवकों की कतार लग गई। उन्होंने वर्षा का जल रोकने के लिए 6,500 जोहड़ बनाये। इससे अलवर और उसके पास के सात जिलों में जलस्तर 60 से 90 फुट तक उठ गया।

परिणाम यह हुआ कि उस क्षेत्र की अरवरी, भगाणी, सरसा, जहाजवाली और रूपारेल जैसी छोटी-बड़ी कई नदियाँ पुनर्जीवित हो गयीं और लगभग एक हजार गांवों को पानी मिल सका।

इसके बाद ‘तरुण भारत संघ’ की चर्चा सब ओर होने लगी। लगन, परिश्रम और कुछ करने की प्रबल इच्छा के साथ-साथ देशज ज्ञान के प्रति राजेंद्र सिंह की निष्ठा ने रंग दिखाया। अकाल के कारण पलायन कर गए ग्रामीण वापस आ गए और क्षेत्र की सूखी धरती फिर से लहलहा उठीं।

इसके बाद अन्न के साथ वन औषधियों, फलों एवं सब्जियों की उपज से ग्रामवासियों की आर्थिक दशा सुधरने लगी। कुपोषण, बेरोजगारी और पर्यावरण की समस्या कम हुई। मानव ही नहीं पशुओं का स्वास्थ्य भी अच्छा होने लगा। तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन भी इस चमत्कार को देखने आए।

इतना ही नहीं बल्कि राजेंद्र सिंह इन दिनों पूरे देश में घूमकर जल संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक कर रहे हैं। राजेंद्र सिंह कहते हैं कि जल हमें ही नहीं पृथ्वी एवं पर्यावरण को बचाने के लिए भी बेहद जरूरी है।

बिना पानी के हरियाली के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। लेकिन जब तक हम पानी का असली मोल नहीं समझेंगे, तब तक पानी के संरक्षण की दिशा में कुछ सार्थक नहीं किया जा सकता।

स्‍टॉकहोम वाटर प्राइज समिति ने राजेंद्र सिंह की प्रशस्ति में लिखा है कि आज पानी की समस्‍या केवल विज्ञान और तकनीक से नहीं सुलझायी जा सकती है। ये प्रशासन, नीति, नेतृत्‍व और सामाजिक प्रतिरोध की मानवीय समस्‍याएं हैं।

राजेंद्र सिंह ने पानी की समस्‍या को सुलझाने के लिए सामाजिक क्षमता का विकास किया और इसके लिए परंपरागत तौर तरीकों को आधुनिक विज्ञान और तकनीक से जोड़ा।