एक ट्रक के पीछे लिखी ये पंक्ति झकझोर गई..

एक ट्रक के पीछे लिखी ये पंक्ति झकझोर गई..

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एक ट्रक के पीछे लिखी ये पंक्ति झकझोर गई..

“हॉर्न धीरे बजाओ मेरा हिन्दू सो रहा है”…

उस पर एक कविता इस प्रकार है कि…

‘अँग्रेजों’ के जुल्म सितम से,
फूट फूटकर ‘रोया’ है..
‘धीरे’ हॉर्न बजा रे पगले
‘देश’ का हिन्दू सोया है।

आजादी संग ‘चैन’ मिला है
‘पूरी’ नींद से सोने दे…!!
जगह मिले वहाँ ‘साइड’ ले ले…
हो ‘दुर्घटना’ तो होने दे…!!
किसे ‘बचाने’ की चिंता में…
तू इतना जो ‘खोया’ है…!!
‘धीरे’ हॉर्न बजा रे पगले …
‘देश’ का हिन्दू सोया है….!!!

ट्रैफिक के सब ‘नियम’ पड़े हैं…
कब से ‘बंद’ किताबों में…!!
‘जिम्मेदार’ सुरक्षा वाले…
सारे लगे ‘हिसाबों’ में…!!
तू भी पकड़ा ‘सौ’ की पत्ती…
क्यों ‘ईमान’ में खोया है..??
धीरे हॉर्न बजा रे पगले…
‘देश’ का हिन्दू सोया है…!!!

‘राजनीति’ की इन सड़कों पर…
सभी ‘हवा’ में चलते हैं…!!
फुटपाथों पर ‘जो’ चढ़ जाते…
वो ‘सलमान’ निकलते हैं…!!
मेरे देश की लचर विधि से…
‘भला’ सभी का होया है…!!
धीरे हॉर्न बजा रे पगले….
‘देश’ का हिन्दू सोया है

मेरा हिन्दू है ‘सिंह’ सरीखा
सोये तब तक सोने दे
‘राजनीति’ की इन सड़कों पर
नित ‘दुर्घटना’ होने दे..
देश जगाने की हठ में तू.
क्यूँ दुख में रोया है.
धीरे हॉर्न बजा रे पगले..
देश’ का हिन्दू सोया है.

अगर देश यह ‘जाग’ गया तो
जग ‘सीधा’ हो जाएगा
पाक चीन ‘चुप’ हो जाएँगे.
और ‘बंगला देश रो जायेगा
राजनीति से ‘शर्मसार’ हो .
‘जन-गण-मन’ भी रोया है.
धीरे हॉर्न बजा रे पगले.
देश का हिन्दू सोया है।

?वंदे मातरम्?