पदभार संभालते ही प्रधान न्यायाधीश ने किए कई अहम बदलाव।

पदभार संभालते ही प्रधान न्यायाधीश ने किए कई अहम बदलाव।

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जस्टिस रंजन गोगोई भारत के नये मुख्य न्यायाधीश बन गये हैं। उन्होंने बुधवार को मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ ली। पद संभालते ही जस्टिस गोगोई ने न्यायपालिका की कार्यप्रणाली में बदलाव शुरू कर दिया है।

जजों के कार्य आवंटन का नया रोस्टर जारी किया गया है जिसमें जनहित याचिकाएं मुख्य न्यायाधीश के अलावा दूसरे नंबर के वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्टिस मदन बी लोकुर के पास भी हैं।

पहले जनहित याचिकाएं सिर्फ मुख्य न्यायाधीश के पास ही थीं। इसके अलावा जस्टिस गोगोई ने सुबह की तत्काल मेंशनिंग पर भी रोक लगा दी है।

उन्होंने कहा है कि सिर्फ फांसी, बेदखली या इमारत ढहाए जाने जैसे अर्जेन्ट मामलों में ही तत्काल सुनवाई की मांग की जाए। उन्होंने कहा कि मेंशनिंग के नये मानक तय होंगे।

पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने वाले चार वरिष्ठ जजों की प्रेस कान्फ्रेंस में शामिल रहे जस्टिस गोगोई ने पहले दिन से ही कार्यप्रणाली बदलने की कवायद शुरू कर दी है।

उस प्रेस कान्फ्रेंस में जजों को कार्य आवंटन पर सवाल उठाए गए थे। ऐसे में लोगों की निगाह इस बात पर टिकी थी कि जस्टिस गोगोई मुख्य न्यायाधीश का पद संभालने के बाद क्या बदलाव करते हैं।

उनकी सिस्टम को सुचारु और व्यवस्थित करने की पहली बानगी सुबह अदालत शुरू होते ही दिखी। जस्टिस दीपक मिश्रा की अदालत में सुबह रोजाना 15 से 20 मिनट तक मेंशनिंग चलती थी जिसमें तत्काल मामलों पर जल्द सुनवाई की मांग होती थी, लेकिन बुधवार को नजारा बदल गया।

जैसे ही मुख्य न्यायाधीश की अदालत बैठी वकीलों ने जिसमें प्रशांत भूषण भी शामिल थे, तत्काल सुनवाई की मांग शुरू की, जस्टिस गोगोई ने उन्हें रोकते हुए कहा कि कोई मेशनिंग नहीं होगी।

वह मेंशनिंग के बारे में मानक तय करेगे। जब वकील मजबूरी बताने लगे तो जस्टिस गोगोई ने कहा कि जिन्हें फांसी होने वाली हो, घर से बेदखल किया जा रहा हो अथवा मकान ढहाया जा रहा हो, सिर्फ वही मामले मेंशन किये जाएं। बाकी केस कोर्ट देखकर तय करेगा कि तत्काल सुनवाई की जरूरत है कि नहीं।

शाम को उनके स्वागत समारोह में जब बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने मेंशनिंग पर रोक का मुद्दा उठाया तो जस्टिस गोगोई ने जवाब में कहा कि मुकदमा दाखिल होने और उसके सुनवाई पर लगने के बीच का समय कम किया जाएगा।

साथ ही देखा जाएगा कि सुनवाई लिस्ट मे शामिल केस अपने आप न हट जाए। जब ऐसा होगा तो स्वयं ही मेंशनिंग की जरूरत घट जाएगी।

जस्टिस गोगई ने आते ही नया रोस्टर जारी किया है। जिसमे जजों के कार्य आवंटन मे बदलाव किये गए हैं। सबसे बड़ा बदलाव जनहित याचिकाओं के बारे में है।

जनहित याचिकाएं मुख्य न्यायाधीश के अलावा जस्टिस मदन बी लोकुर के पास भी रखी गई हैं हालांकि जस्टिस लोकुर उन्हीं जनहित याचिकाओं को सुनेंगे जिन्हें सुनवाई के लिए मुख्य न्यायाधीश उन्हें भेजेंगे।

जनहित याचिकाएं सामान्यता सरकार के खिलाफ होती हैं। जस्टिस लोकुर भी गत जनवरी की ऐतिहासिक प्रेस कान्फ्रेंस में शामिल थे।

इसके अलाव जस्टिस गोगोई के पास सर्विस मैटर को छोड़कर लगभग वे सभी मामले हैं जो जस्टिस मिश्रा के पास थे उसमें सिर्फ दो श्रेणियां और शामिल हुई हैं।

जिसमें न्यायिक अधिकारियों के केस और कंपनी ला, आरबीआई, ट्राई, सेबी आदि के केस हैं। बाकी रोस्टर में ज्यादा बदलाव नहीं है सिर्फ कुछ एक श्रेणियों के केस एक दूसरे जज से अदले बदले गये हैं।

कड़े अनुशासन की पहचान रखने वाले जस्टिस गोगोई ने सुबह अदालत में एक वकील को उनकी तारीफ करने और शुभकामनाएं देने से रोक दिया।

इसके अलावा स्वयं के नाम से जनहित याचिका दाखिल करने वाले वकील को नियम याद दिलाया कि वह वकील का बैंड लगाकर बहस नहीं कर सकता।

इसके पूर्व जस्टिस रंजन गोगोई ने बुधवार को देश के नए मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण की। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। वे देश के 46वें सीजेआई बने।

गंभीर, अनुशासनप्रिय, मितभाषी और हर चीज को व्यवस्थित रखना जस्टिस गोगोई की खासियत है। इस व्यवहार के कारण जस्टिस गोगोई से देश और न्यायपालिका को काफी उम्मीदें हैं।

अदालतों में करोड़ों मुकदमों का ढेर और न्यायाधीशों के खाली पड़े पद की समस्याएं जस्टिस गोगोई के लिए एक बड़ी चुनौती होंगी।

हालांकि उन्होंने पद संभालने से पहले ही एक बयान में इस ओर चिंता जताते हुए मुकदमों का बोझ खत्म करने के लिए कारगर योजना लागू किये जाने का संकेत दिया था, जो कि न्यायपालिका के उज्ज्वल और सकारात्मक भविष्य की ओर इशारा करता है।

जस्टिस गोगोई बुधवार को जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ के साथ मुख्य न्यायाधीश की अदालत में मुकदमों की सुनवाई करने बैठेंगे।

पहले दिन भले ही उनकी अदालत में सुनवाई के लिए कम मुकदमे लगे हों, लेकिन देश भर की अदालतों में लंबित 2.77 करोड़ मुकदमें नये मुखिया की नयी योजना का इंतजार कर रहे होंगे। इन मुकदमों में 13.97 लाख मुकदमें वरिष्ठ नागरिकों के हैं और 28.48 लाख मुकदमें महिलाओं ने दाखिल कर रखे हैं।

इतना ही नहीं उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में लंबित 54000 मुकदमे भी अपने मुखिया की नयी कार्यप्रणाली और शीघ्र मुक्ति का इंतजार कर रहे हैं।

जस्टिस गोगोई का मुख्य न्यायाधीश के तौर पर करीब 14 महीने का कार्यकाल है। वह 17 नवंबर 2019 तक इस पद पर रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट मे न्यायाधीशों के कुल 31 मंजूर पद हैं जिसमे से अभी 25 न्यायाधीश काम कर रहे हैं।

जस्टिस दीपक मिश्रा के सेवानिवृत होने के बाद यह संख्या घट कर 24 रह जाएगी। जस्टिस गोगोई के कार्यकाल में पांच और न्यायाधीश सेवानिवृत होंगे और सुप्रीम कोर्ट की कुल रिक्तियां 11 हो जाएंगी।

उच्च न्यायालयों में भी जजों के 427 पद रिक्त हैं। न्यायाधीशों के खाली पड़े पद और अदालतों में ढांचागत संसाधनों की कमी भी मुकदमों के ढेर का एक बड़ा कारण है। इन सभी पहलुओं को देखना होगा।

जस्टिस गोगोई के कुछ फैसलों पर निगाह डालें तो उन्होंने उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन आवास देने का नियम रद कर दिया था और सभी पूर्व मुख्य मंत्रियों को सरकारी बंगला खाली करने का आदेश दिया था।

सरकारी विज्ञापनों में ज्यादा से ज्यादा मंत्रियों और नेताओं की फोटो छपने का चलन भी जस्टिस गोगोई के फैसले से खत्म हुआ है।

उन्होंने सरकारी विज्ञापनों में सिर्फ प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के फोटो छापने की इजाजत दी है हालांकि बाद मे राज्यपाल और संबंधित मंत्री की फोटो को भी इजाजत दे दी गई, लेकिन थोक में नेताओं की फोटो छपना बंद हो गया।

जस्टिस गोगोई की चर्चा हो और सुप्रीम कोर्ट के ही पूर्व न्यायाधीश मार्कन्डेय काटजू का प्रकरण न याद किया जाए तो बात अधूरी रह जाती है।

सौम्या हत्याकांड में जस्टिस रंजन गोगोई की पीठ के फैसले पर जस्टिस काटजू ने आलोचनात्मक टिप्पणियां की थीं जिस पर जस्टिस गोगोई ने जस्टिस काटजू को नोटिस जारी कर सुप्रीम कोर्ट में तलब कर लिया था।

हाईकोर्ट के जज जस्टिस कर्नन को न्यायालय की अवमानना में जेल भेजने वाली पीठ में जस्टिस गोगोई भी शामिल थे। मूलत: असम के रहने वाले जस्टिस गोगोई की पीठ ही असम एनआरसी केस की सुनवाई भी कर रही है।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने बुधवार को कहा कि न्यायाधीशों का वेतन बढ़ाना या उनकी सेवानिवृति की आयु बढ़ाया जाना मायने नहीं रखती बल्कि संस्था की साख और गरिमा कायम रहना महत्वपूर्ण है। और ये तभी कायम रह सकती है जब सही लोगों की नियुक्ति होगी।

उन्होंने स्वागत समारोह के दौरान अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल की जजों का वेतन और सेवानिवृत आयु बढ़ाये जाने की बात पर कहा कि आप की जितनी मर्जी हो वेतन बढ़ा दीजिये या सेवानिवृत की आयु बढ़ा दीजिये, लेकिन उनका मानना है कि जबतक और मुद्दे नहीं देखे जाएंगे तबतक समस्या हल होने वाली नहीं है।

संस्था की साख और गरिमा महत्वपूर्ण है। वेतन बढ़ा कर 20 लाख और उम्र बढ़ा कर 70 साल कर लो लेकिन समस्या का हल तब निकलेगा जब सही व्यक्ति की नियुक्ति होगी और वह संस्था की साख और गरिमा को कायम रखेगा।

उन्होंने कहा कि अधीनस्थ अदालतों में 5000 पद खाली हैं। उन्हें भरना प्राथमिकता है। 3-4 महीने में भरने की प्रक्रिया होगी लेकिन उन्हें भरना पूरी समस्या का हल नहीं है थोड़ा बहुत हल हो सकता है।

समस्या तब हल होगी जब सही व्यक्ति पद पर नियुक्त होगा और सही व्यक्ति तब आएगा जब संस्था की साख और गरिमा कायम रहेगी।