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बड़ी खबर : जनधन खातों की जांच के लिए पीछे पड़ी सीआईसी, जानें क्या है वजह?

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प्रधानमंत्री जनधन योजना साल 2014 में लांच की गई थी। जिसके अंतर्गत देश के हर नागरिक का अपना बैंक खाता हो।

केंद्रीय सूचना आयोग (सीआइसी) ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) से पूछा है कि विभिन्न बैंकों के जनधन खातों में बंद किए हुए कितने नोट पहुंचे हैं।

उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री जनधन योजना अगस्त, 2014 में शुरू की थी। इसका मकसद बचत, बैंक खातों, कर्ज लेने, बीमा, पेंशन आदि वित्तीय सेवाएं बैंकिंग क्षेत्र की सभी सेवाएं वंचितों को भी मुहैया कराना है।

लेकिन 8 नवंबर, 2016 को हुई नोटबंदी के दौरान जनधन खातों में जमा धनराशि की बाढ़-सी आ गई।

बताया जाता है कि इस साल अप्रैल में इन खातों में जमा रकम बढ़कर 80 हजार करोड़ रुपये तक हो गई है। सूचना आयुक्त सुधीर भार्गव ने आरबीआइ को जनधन खातों में 500 और हजार रुपये के बंद किए गए नोटों के रूप में जमा रकम बताने का निर्देश दिया है। यह जानकारी याचिकाकर्ता सुभाष अग्रवाल को दी जानी है।

सुभाष ने नोटबंदी से जुड़ी अन्य जानकारियां भी मांगी हैं। भार्गव ने आरबीआइ को निर्देश दिया है कि अगर इस मामले से जुड़ी जानकारी उपलब्ध न हो तो सभी बैंकों को एक हलफनामा देना पड़ेगा जिसमें बताया गया होगा कि सूचना से संबंधित कोई रिकार्ड उनके पास नहीं है।

आयोग ने आरबीआइ से यह भी पूछा है कि वह बताए कि बंद किए हुए कितने नोट नए नोटों से बदले गए हैं। जनधन खातों के अलावा, आयोग ने आरबीआइ से सभी बैंकों के बचत और चालू खातों में जमा बंद किए गए सभी नोटों की जमा राशि के बारे में भी पूछा है।

उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता सुभाष अग्रवाल ने आरटीआइ के जरिए नोटबंदी की पूरी कवायद, बैंक अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों, विभिन्न खातों में जमा धन, लोगों के बंद किए गए नोटों से बदले गए नए नोटों के बारे में भी पूछा गया था।

लेकिन अग्रवाल ने आरबीआइ से कोई जानकारी न मिलने पर आयोग का दरवाजा खटखटाया। इसके बाद सूचना आयोग ने भी सरकारी और निजी बैंकों से जुड़ी जानकारियां सार्वजनिक करने को कहा है।

नोटबंदी के बाद आरबीआइ के दिशा-निर्देशों का पालन न करने वाले बैंक अधिकारियों का भी ब्योरा मांगा है। साथ ही उन पर हुई कार्रवाई के बारे में भी जानकारी मांगी गई है।