सुप्रीम कोर्ट का प्रशांत भूषण पर फैसला

सुप्रीम कोर्ट का प्रशांत भूषण पर फैसला

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सुप्रीम कोर्ट का प्रशांत भूषण पर फैसला

गाँधीवादी घेराबंदी बनाम *1* रुपए की इज्जत अर्थात *सेर को सवासेर …*…

सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य-न्यायाधीश की अवमानना के मसले पर कुख्यात वकील प्रशांत भूषण पर एक रुपए का ज़ुर्माना लगाया है, ज़ुर्माना न भर पाने की सूरत में तीन महीने की क़ैद तथा साथ ही तीन साल के लिए वकालत पर प्रतिबंध लगाया जाएगा *…*…

इस फैसले को सुनकर प्रथम दृष्ट्या हमें लगेगा कि यह क्या हास्यास्पद फैसला है? एकदम बकवास, बोगस, विद्रुपतापूर्ण, सस्ता और *प्रशांत भूषण के विरोध के आगे झुकता सा*,? *हार मानता सा*, *घुटने टेकते सा फैसला …*…

लेकिन यह असल में वैसा नहीं है जैसा आपको ऊपर-ऊपर लग रहा है, सुप्रीम-कोर्ट की इस बेंच ने दुनिया के सुप्रीम-कोर्टों के इतिहास में पहली बार वह किया जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, दुनिया के न्यायालय हमेशा प्रतिरोध की आवाज़ और एडेमिक घेरेबंदी के आगे बौने साबित हुए हैं, दुनिया में हर बार न्यायालय सत्तावादी विमर्श में शोषक और निर्मम साबित किए जाते रहे हैं, दुनिया का हर इतिहास ऐसी घटनाओं और उदाहरणों से भरा पड़ा है *…*…

लेकिन भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस शानदार फैसले में मानो कलम तोड़ दी हो, प्रशांत भूषण ने अपनी सूझबूझ और रणनीति से सुप्रीम कोर्ट को विराट सत्ता और शोषण के रूपक की तरह फ्रेम्ड कर दिया था; पूरी दुनिया में भारत का सुप्रीम कोर्ट अभिव्यक्ति की आज़ादी और जनता की आवाज़ को दबाने वाली इकाई की तरह दिखने लगा था *…*…

प्रशांत ने इंग्लैंड और अमेरिका तक में अपने लिए समर्थन जुगाड़ लिया था, इस खूबसूरत घेरेबंदी के बाद अगर प्रशांत को सुप्रीम कोर्ट सज़ा देता तो यह एक सत्तावादी धड़े का एक जनवादी वकील पर सत्ता का इस्तेमाल करके आवाज़ दबाना होता, यानि फिर एक न्यायालय का परास्त होना होता *…*…

कानून की नज़र में सुप्रीम कोर्ट अथवा बार काउंसिल अपनी पीठ और नैतिकता को ज़रूर सहला लेते, थपथपा लेते लेकिन अभिव्यक्ति के नज़रिए से, अभिव्यक्ति के माध्यमों और अभिव्यक्ति के मंचों पर भारत का सुप्रीम कोर्ट भारत की सरकार का सब-ऑर्डिनेट सिद्ध हो जाता और भारत और उसके न्याय की विश्वसनीयता दुनिया की नज़र में दो कौड़ी की हो जाती *…*…

ये गद्दार प्रशांत भूषण के इस अकेले कदम से मोदी और उनकी सरकार की छवि को बड़ा धक्का लगता और यह भी कि चुनाव जीत कर आने के बाद मोदी सरकार ने संवैधानिक संस्थाओं पर कब्ज़ा जमाकर देश को तानाशाही दे दी है- *का रूपक लोगों में घर कर जाता …*…

वैसे भी पहले से ही हिन्दुत्ववादी सत्ता विमर्श और बहुसंख्यक शक्ति के बल पर देश में लोकतंत्र की हत्या का एकेडेमिक्स रूपक दुनिया भर के ज्ञान जगत और अभिव्यक्ति के मंचों पर सिर चढ़कर बोल रहा है, इन मंचों पर प्रधानमंत्री मोदी की किम जोंग से कम की छवि नहीं है *…*…

पूरी दुनिया में मार्क्सवादी एकेडेमिक्स प्रतिरोध की भाषा का मास्टर माना जाता है, भारत में शाहीनबाग के समय छात्रा का लाठीधारी पुलिसवाले को गुलाब देती तस्वीर ने जैसे इस गुण को उच्चता दे दी थी, *वह एक शानदार प्रयोग था* पूरी दुनिया की मीडिया ने उस तस्वीर का इस्तेमाल किया था और भारत की सरकार की पुलिस की बर्बरता के बरअक्स छात्रों का गाँधीवादी विरोध एक शानदार रूपक बन गया था *…*…

प्रशांत भूषण ने भी पिछले दिनों से सरकार के खिलाफ़ अपनी प्रतिबद्धता को पुरज़ोर तरीके से प्रकट किया है, वो लगातार सरकार के तमाम फैसलों के विरुद्ध कोर्ट में अथवा अभिव्यक्ति के विभिन्न मंचों पर जाता रहा है, राममंदिर मसले पर भी ये सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ़ था *…*…

इसी की कड़ी में प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पर आपत्तिजनक ट्वीट किया था उस ट्वीट के निहितार्थ थे कि सुप्रीम कोर्ट के जज भाजपा सरकार से अनुग्रहीत हैं, इसका सीधा अर्थ है कि भारत का उच्च न्यायालय संविधान की नहीं सरकार की चाकरी कर रहा है, सुप्रीम कोर्ट द्वारा घटना का संज्ञान लेने पर प्रशांत का माफी माँगने से इंकार करना और उसे सत्ता द्वारा उनकी आवाज़ दबाने के प्रयत्न की तरह प्रचारित करना एक ऐसा दबाव था जिसके आगे सुप्रीम कोर्ट बौना हो सकता था *…*…

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में प्रशांत भूषण की तमाम कोशिशों को पटकनी दे दी है, अब प्रशांत भूषण अगर ज़ुर्माना भरता है तो यानि अपनी ग़लती मानता है, जिससे उनकी नैतिक और रणनीतिक हार होती है क्योंकि उसने सुप्रीम कोर्ट की जो क्रूर और सत्तावादी चाकर की छवि बनाई थी उस पर आघात लगता है और नहीं देता है तो जेल और 1095 दिनों तक वकालत के क्षेत्र से प्रतिबंधित होने का दंश झेलने को बाध्य होगा, भारत के हर दूसरे मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय रहने वाले एक्टिविस्ट वकील के लिए यह सज़ा फाँसी से कम नहीं है तो ऐसे देखें तो *इस? प्रशांत भूषण के नहले पर सुप्रीम कोर्ट ने दहला मारा है …*…

एक शोषक, सत्तावादी चाकर का सारा रूपक एक रुपए के ज़ुर्माने की रकम के आगे भरभरा जाएगा, शोषण और आवाज़ दबाने के विमर्श को एक रुपया कमज़ोर कर देगा अगर ज़ुर्माने की रकम एक, दो, दस या बीस लाख होती तो यकीनन प्रशांत को रणनीतिक बढ़त मिलती लेकिन एक रुपए ने उनकी रणनीति को धत्ता बताते हुए सुप्रीम कोर्ट को बढ़त दे दी है, *नौटंकीबाज देशद्रोही प्रशांत के गाँधीवाद के बरअक्स सुप्रीम कोर्ट ने गाँधीवाद की बड़ी लकीर खींचकर अपने स्यानेपन का सबूत दिया है …*…

जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षा में जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने प्रशांत के गाँधीवादी घेरेबंदी का बेहतरीन तोड़ निकालकर यह साबित कर दिया कि भारत का सुप्रीम कोर्ट किसी भी किस्म के बाहरी दबाव या रणनीति को बेहतरीन ढंग से काउंटर कर सकता है, *सुप्रीम कोर्ट को भारत के संविधान का प्रहरी यूँ ही नहीं कहा जाता …*…

यह फैसला देकर जजों ने अपनी सूक्ष्म बुद्धि का परिचय तो दिया ही है लेकिन साथ ही किसी भी लोकतंत्र में नकारात्मक प्रेशर-ग्रुप्स को भी एक शानदार मैसेज दिया है कि वे कोर्ट को हलवा न समझें, *दो मज़बूत पक्षों की लड़ाई में एक संस्थानिक लोकतांत्रिक संस्था की सूझबूझ और समझदारी को देखकर भारतीय लोक के गर्व हो सकता है !!!!!!!!!*