अगर आप खाते हैं आइसक्रीम और पीते हैं दूध तो हो जाइए...

अगर आप खाते हैं आइसक्रीम और पीते हैं दूध तो हो जाइए सावधान

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हाल ही में मिली ताजा समाचारों के अनुसार यह बात सामने आ रही है कि यदि आप दूध और आइसक्रीम का सेवन करते हैं तो इससे कई प्रकार की जानवरों की टीबी फ़ैल रही है।

ताजा सूत्रों के हवाले से है जानकारी प्राप्त हो रही है कि बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू के बाद जानवरों से मनुष्यों में पैरा टीबी फैल रही है। इंसानों में पैरा टीबी का बैक्टीरिया संक्रमण फैला रहा है।

इंसानों में पैरा टीबी का बैक्टीरिया (माइकोबैक्टीरियम एवीयम पैरा ट्यूबरक्लोसिस) आंत में संक्रमण के बाद धीरे-धीरे शरीर को खोखला कर रहा है। अब यह जानलेवा होने लगा है।

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) द्वारा तीन साल तक कराई गई रिसर्च इसी साल जून में पूरी हुई है। इसमें कच्चा दूध, दूध के उत्पाद, आइसक्रीम, पशुओं के मल और मांस से पैरा टीबी फैलने के चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।

रिसर्च में सामने आया है कि बकरी, भैंस की तरह पैरा टीबी का बैक्टीरिया मनुष्यों में पहुंचने के बाद आंत में संक्रमण फैलाता है। इससे डायरिया, पेट दर्द की शिकायत होती है। दवाओं से संक्रमण और दर्द सही हो जाता है लेकिन बैक्टीरिया शरीर के अन्य अंगों में संक्रमण करने लगता है।

इससे प्रतिरोधक क्षमता कम होती जाती है, शरीर खोखला होने लगता है। सालों तक पैरा टीबी के शरीर में पड़े रहने से सेकेंडरी इन्फेक्शन होने लगते हैं। इन्फेक्शन फैलने के बाद कोई इलाज नहीं है और मौत हो जाती है।

आंत में संक्रमण और प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर क्रोंस डिजीज डायग्नोज करते हुए इलाज किया जाता है।वैज्ञानिक शूर वीर सिंह ने बताया कि क्रोंस डिजीज के केस में इंसानों में पैरा टीबी फैलने पर विदेशों में ऑपरेशन कर आंत निकाल दी जाती है।

भारत में इसके लिए कुछ एंटीबायोटिक, एंटी इनफ्लामेट्री दवाएं नौ से 12 महीने के लिए दी जाती हैं। वहीं, पशुओं में पैरा टीबी ना फैले इसके लिए बकरी अनुसंधान केंद्र में ही वैक्सीन तैयार की जा चुकी है।

पेट में दर्द, आधा-आधा घंटे बाद शौच के लिए जाना, डायरिया। हल्का बुखार, आंत में संक्रमण। कुछ केस में सालों तक पैरा टीबी का बैक्टीरिया शांत पड़ा रहता है।

आइसीएमआर ने जून 2015 में आगरा के जालमा कुष्ठ एवं अन्य माइकोबैक्टीरियल रोग संस्थान और मथुरा के केंद्रीय बकरी अनुसंधान केंद्र को पैरा टीबी फैलने के कारण जानने के लिए रिसर्च प्रोजेक्ट दिया। यह तीन साल तक चलना था।

रिसर्च में पहली साल में ही जानवरों से मनुष्यों में तेजी से पैरा टीबी फैलने के संकेत मिलने लगे। इसके बाद एम्स, दिल्ली को भी रिसर्च में शामिल कर लिया गया। इसी साल जून में जालमा और बकरी अनुसंधान केंद्र ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। एम्स, दिल्ली में अभी रिसर्च चल रही है।

रिसर्च में शामिल जालमा के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. डीएस चौहान ने बताया कि कच्चा दूध, ब्रांडेड कंपनी का पाश्चराइज्ड दूध, पनीर, आइसक्रीम, जानवरों के मल और मांस की कोडिंग करने के बाद माल्युकुलर लेवल की जांच पीसीआर 900 द्वारा कराई गई।

इसमें बड़ी संख्या में पैरा टीबी के बैक्टीरिया मिले हैं। इसकी आइसीएमआर में डीकोडिंग की जानी है। इस रिसर्च में जालमा के डॉ. अजय वीर सिंह व टीम शामिल रही।

रिसर्च में शामिल केंद्रीय बकरी अनुसंधान से सेवानिवृत्त वैज्ञानिक शूर वीर सिंह ने बताया कि बकरी, भैंस, भेड़, नील गाय डायरिया के बाद कमजोर होने लगीं। कुछ साल बाद मौत हो गई। इनकी जांच में पैरा टीबी का संक्रमण मिला, बीमारी तेजी से फैलने पर पशुओं के दूध की जांच कराई गई।

इसमें पैरा टीबी के बैक्टीरिया मिले। कच्चा दूध पीने से इंसानों में पैरा टीबी फैलने की आशंका पर जांच कराई गई। जानवरों से इंसानों में पैरा टीबी फैलने की पुष्टि के बाद आइसीएमआर द्वारा रिसर्च प्रोजेक्ट दिया गया।