घर पर खुद ही न बने डॉक्टर, हो सकता है भारी नुकसान।

घर पर खुद ही न बने डॉक्टर, हो सकता है भारी नुकसान।

92
0
SHARE

एंटीबॉयोटिक दवाओं का लंबे समय तक सेवन दवाओं के असर को भी कम या खत्‍म कर देता है। नतीजतन सामान्य संक्रमण और बीमारियां भी प्राणघातक बन जाती हैं।

एंटीबॉयोटिक दवाओं का सेवन बैक्टीरिया संबंधी संक्रमण से बचाव के लिए किया जाता है। लंबे समय तक इन दवाओं को खाने से शरीर पर इनका असर बंद हो जाता है।

नतीजतन सामान्य संक्रमण और बीमारियां भी प्राणघातक बन जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी चेताते हुए एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें इन दवाओं के लिए बढ़ रही प्रतिरोधक क्षमता को स्वास्थ्य के लिए बड़े खतरों में से एक माना है।

अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज डायनामिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के मुताबिक 2000 से 2015 के बीच पूरी दुनिया में एंटीबॉयोटिक दवाओं की कुल और व्यक्तिगत खुराक में बिक्री 65 फीसद अतिरिक्त रही है।

इस शोध में शोधकर्ताओं ने हेल्थ रिसर्च कंपनी आइक्यूवीआइए के 75 देशों में 100 से अधिक एंटीबॉयोटिक दवाओं के डाटा पर अध्ययन किया था।

एलर्जिक रिएक्शन, सांस लेने में दिक्कत, पित्त, जीभ में सूजन, त्वचा में तकलीफ, दर्द, बुखार, कफ, चेहरे पर सूजन, मुंह व गले में दर्द, ब्लड रिएक्शन, मांस पेशियों में दर्द व सूजन, आंत के लिए नुकसानदायक, एंटीबॉयोटिक दवाओं का असर न करना

2016 में एंटीबॉयोटिक दवाओं के असर न करने से दुनिया में तकरीबन सात लाख लोगों की मौत हो गई थी। बढ़ रहे इस खतरे के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन हर साल 12 से 18 नवंबर के बीच विश्व एंटीबॉयोटिक अवेयरनेस वीक मनाता है।

जी मिचलाना, उल्टी, पेट में दर्द ,दस्त, सन एलर्जी (धूप और सूर्य की किरणों के प्रति त्वचा का संवेदनशील होना) दांतों पर धब्बे (उन बच्चों के लिए सबसे ज्यादा खतरा जिनके दांत विकसित हो रहे हैं।)

इन सभी परेशानियों से बचने के लिए अपना इलाज खुद न करें न ही किसी झोलाछाप डॉक्टर से कराएं। बीमार होने पर किसी मान्यता प्राप्त डॉक्टर से इलाज कराएं और निर्देशों के आधार पर ही दवाएं खाएं।

प्रोसिडिंग ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस की रिपोर्ट के मुताबिक एंटीबॉयोटिक के इस्तेमाल का वैश्विक आंकड़ा जुटाना मुश्किल है। लिहाजा इसे इस तरह समझा जा सकता है कि 2000 में प्रति एक हजार लोगों पर इन दवाओं के सेवन की दर 11.3 फीसद थी जो 2015 में 15.7 तक हो गई।

निम्न व मध्य आय वाले देशों में 2000 से 2015 के बीच (15 सालों में) एंटीबॉयोटिक दवाओं की मांग 114 फीसद तक बढ़ी है। हालांकि इन देशों में बढ़ती खपत को बुरा नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि उच्च आय वाले देशों की तुलना में यहां पहुंच की कमी की वजह से भी दवाएं नहीं पहुंच पाती हैं।

ब्रोंकाइटिस कंजक्टिवाइटिस कान में संक्रमण यौन संक्रमण गले में दर्द, सांस नली में होने वाला संक्रमण, यूटीआइ संक्रमण त्वचा संक्रमण

इसके परिणामस्वरूप बीमारी के उपचार में ज्यादा समय तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है। अनावश्यक पैसा भी खर्च होता है और अधिक मात्रा में दी गई दवाइयां मौत का कारण बनती हैं।