भारतवासियों की कम उम्र में हो रही खराब तबीयत पर आई चौंकानेवाली...

भारतवासियों की कम उम्र में हो रही खराब तबीयत पर आई चौंकानेवाली रिपोर्ट।

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वैज्ञानिकों के अनुसार घर के बाहर शोर व रोशनी या अधिक तापमान नींद न आने के कारण हो सकते हैं। दक्षिण कोरिया के वैज्ञानिकों ने 60 साल से अधिक उम्र के 52,027 लोगों पर किया अध्ययन।

भारत समेत पूरी दुनिया के लिए प्रदूषण सबसे बड़ा खतरा बन चुका है। हर साल दुनिया भर में करोड़ों लोग प्रदूषण से मर रहे।

अब तक हम तीन तरह के प्रदूषण जल, वायु व ध्वनि प्रदूषण से ही वाकिफ थे, लेकिन अब ताजा शोध में पता चला है कि प्रकाश प्रदूषण भी आम जनजीवन के लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है। प्रकाश प्रदूषण हमारी नींद पर ग्रहण लगा रहा है।

अध्ययन में पता चला है कि विभिन्न तरह के इन प्रदूषण की वजहों से भारत में लोगों की औसत आयु लगातार घट रही है, जो भविष्य के लिए बड़ा खतरा है। भारत अकेले इस समस्या से नहीं जूझ रहा है। भारत जैसी ही स्थिति चीन में भी बनी हुई है।

इस वजह से दोनों देशों में औसत आयु में 73 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि तमात प्रयासों के बावजूद आने वाले सालों में स्थिति और खराब होने वाली है।

रोहतक में आयोजित चौधरी रणबीर सिंह स्मृति व्याख्यान में शामिल होने आए प्रतिष्ठित ऊर्जा अर्थशास्त्री और यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रो. माइकल ग्रीनस्टोन के अनुसार वैश्विक आबादी का 50 फीसद या 5.5 अरब लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं, जहां वायु प्रदूषण डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित सीमा को पार कर गया है।

भारत और चीन में दुनिया की 36 फीसद आबादी रहती है। दोनों देशों में वायु प्रदूषण के कारण औसत आयु में 73 फीसद की कमी आई है।

उड़ती धूल से लोगों में सर दर्द, बुखार, नेत्र रोग, चर्म रोग, स्वांस रोग, एलर्जी जैसी बीमारियों की शिकायत बढ़ती जा रही है। इससे बचाव के लिए लोगों को धूल प्रभावित क्षेत्रों से गुजरने के समय मास्क का प्रयोग करना चाहिए। मास्क न होने पर रूमाल या की कपड़ा गीला कर मुंह पर बांधना भी अच्छा विकल्प है।

सड़क किनारे संचालित नाश्ता, चाय व अन्य खाद्य वस्तुओं की दुकानों पर खुले में रखी सामग्री पर धूल पड़ने से इसका सेवन करने वालों में पेट संबंधी बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ जाता है। इसका दुष्प्रभाव सबसे ज्यादा बच्चों और बुजुर्गों पर पड़ता है।

प्रदूषण और आद्र्रता से ग्राउंड लेबल पर ओजोन का स्तर बढ़ रहा है। इससे नाक और सांस की नलिकाओं में सूजन और संक्रमण की शिकायत बढ़ रही है, जिसकी वजह से लोग खांसते-खांसते परेशान हैं।

दवा और कफ सीरप से भी खांसी ठीक नहीं हो रही है। प्रदूषण में पीएम 2.5 सूक्ष्म कण, ओजोन, नाइट्रेट, सल्फेट, कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा ज्यादा है।

प्रदूषण और आद्र्रता बढऩे से फोटो केमिकल स्मॉग भी बन रहा है। प्रोफेसर डॉ. जीवी सिंह ने बताया कि फोटो केमिकल स्मॉग में निचली सतह पर ओजोन की मात्रा लगातार बढ़ रही है।

यह ओजोन नाक और सांस की नलिकाओं के म्यूकोसा (द्रव्य पदार्थ) को नुकसान पहुंचा रही है। इससे सामान्य लोगों में सांस की नलिकाओं में सूजन और संक्रमण हो रहा है।

ज्यादा देर तक प्रदूषण वाली जगह पर रहने वाले लोगों के लिए खांसी समस्या बन रही है। खांसते-खांसते लोगों की सांस फूल रही है।

प्रदूषण से अस्थमा और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) से पीडि़त मरीजों की सांस उखडऩे लगी है। सूक्ष्म कणों की मात्रा बढऩे से सांस संबंधी बीमारियों से पीडि़त मरीजों के फेफड़ों में संक्रमण हो रहा है।

स्वस्थ रहने के लिए सिर्फ पर्याप्त नींद नहीं, बल्कि रात में पूरी नींद लेना जरूरी है। ऐसा न करना कई रोगों को दावत देना है। दक्षिण कोरिया स्थित सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर क्यॉन्ग-बोक मिन कहते हैं, दक्षिण कोरिया के बुजुर्गो पर किए गए अध्ययन में पता चला है कि रात में आउटडोर और कृत्रिम प्रकाश की तीव्रता का नींद की दवाओं के साथ गहरा संबंध है।

अध्ययन बताता है कि रात में घर के बाहर तेज प्रकाश का असर नींद पर पड़ता है। इसके चलते नींद आने में परेशानी होती है।

इससे बुजुर्ग पर्याप्त नींद नहीं ले पाते। ऐसे में वे नींद की दवाओं का सेवन करने लगते हैं। यदि वे पहले से इन दवाओं का प्रयोग कर रहे हैं तो इसकी मात्र बढ़ा देते हैं।

अध्ययन में सामने आया कि वर्तमान में प्रकाश प्रदूषण, अनिद्रा का सबसे बड़ा कारण बनता जा रहा है। इसका सीधा असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। अन्य तरह के प्रदूषण से भी लोगों की दिनचर्या प्रभावित हो रही है।

इससे लोगों में अवसाद, मोटापा, डायबिटीज, क्रोनिक डिसीज, आंखों की बीमारी, स्वांस रोग, पेट की बीमारी, चर्म रोग, सर दर्द और यहां तक कि कैंसर का भी खतरा पैदा हो जाता है।

ध्वनि प्रदूषण से लोगों में बहरेपन की भी समस्या बढ़ रही है। प्रदूषण से लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो रही है।

शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन में 52,027 प्रतिभागियों को शामिल किया था, जिनकी उम्र 60 साल या उससे ज्यादा थी। इन प्रतिभागियों में 60 फीसद महिलाएं थीं।

पर्यावरणविद् डॉ. संजय कुलश्रेष्ठ कहते हैं कि प्रदूषण की स्थिति लगातार भयावह होती जा रही है। इसके लिए जरूरी है कि सरकार बड़े स्तर की प्लानिंग करे। बड़े स्तर पर स्टडी कराकर प्रदूषण के बड़े कारण तलाशने होंगे।

जब कारण पता चले तो उसके निवारण को लेकर योजना बने और बजट निर्धारित किया जाए। प्रदूषण के तीन बड़े कारण हैं। वाहनों की संख्या लगातार बढ़ रही है। उनका धुआं तो जहरीला हो ही रहा है।

वाहनों के कारण धूल भी सड़क पर बहुत उड़ रही है। इसके अलावा निर्माण कार्यों में मानकों का ध्यान न रखने से भी प्रदूषण फैल रहा है। इसके लिए वृहद स्तर पर काम करने की जरूरत है।

आइआइटी दिल्ली के तीन पूर्व छात्रों ने संस्थान के प्रोफेसरों के साथ मिलकर ऐसा प्रदूषण रहित जाल तैयार किया है, जो जहरीली हवा को घर के अंदर घुसने से रोकेगा।

इसकी मदद से पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 और पीएम 10 जैसे प्रदूषण तत्व घर के अंदर प्रवेश नहीं कर सकेंगे। इसे पॉल्यूशन नेट नाम दिया गया है।

आइआइटी के इनक्यूबेशन सेटर में कई स्टार्टअप कंपनियों को काम करने के लिए जगह दी गई है। यहीं पर पूर्व छात्र अपने-अपने स्टार्टअप के प्रोडक्ट तैयार कर रहे हैं। पॉल्यूशन नेट भी इनमें से एक है। इसे 2 दिसंबर को विश्व प्रदूषण रोकथाम दिवस के अवसर पर संस्थान में लांच किया गया।

इन्हीं तीन पूर्व छात्रों ने नैनो टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए नेजोफिल्टर प्रोडक्ट भी तैयार किया है, जिसे नाक में लगाने से पीएम 2.5 जैसे बेहद महीन प्रदूषित कण सांस के जरिये शरीर के अंदर नहीं जा पाएंगे।

विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों द्वारा पराली जलाने से जमीन, आसमान, हवा और पताल चारों प्रभावित हो रहे हैं। अकेले हरियाणा में 40 लाख टन पराली हर वर्ष जलाई जाती है।

पर्यावरणविदों के अनुसार यदि किसान नहीं जागे तो अगले 20 से 30 साल में भूमि की उत्पादन क्षमता बहुत कम हो जाएगी।

वैज्ञानिकों का कहना है कि तापमान बढ़ने से पानी की मांग 20 फीसद तक बढ़ेगी, जबकि इसकी उपलब्धता 15 फीसद तक घट जाएगी।

पराली जलाने से भूमि की ऊर्वरा शक्ति लगातार घट रही है। इस कारण भूमि में 80 फीसद तक नाइट्रोजन, सल्फर और 20 फीसद अन्य पोषक तत्वों में कमी आई है।

मित्र कीट नष्ट होने से शत्रु कीटों का प्रकोप बढ़ा है, जिससे फसलों में बीमारियां हो रही हैं। मिट्टी की ऊपरी परत कड़ी होने से जलधारण क्षमता में कमी आई है।

20 शहरों में प्रदूषण के दुष्प्रभाव का अध्ययन करा रहा केंद्र
वायु प्रदूषण के कारणों और समाधान को लेकर तमाम अध्ययन किए गए, लेकिन अब तक सब विफल रहे। लिहाजा केंद्र सरकार अब इसका स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव का अध्ययन करा रही है।

दरअसल, प्रदूषण से स्वास्थ्य पर पड़ रहे दुष्प्रभाव को लेकर अब तक जितनी भी रिपोर्ट बनी हैं, सभी विदेशों में तैयार हुई हैं। यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा भारत में प्रदूषण से होने वाली मौतों का जारी आंकड़ा भी इन्हीं रिपोर्ट पर आधारित होता है।

इसीलिए इनकी प्रामाणिकता पर भी सवालिया निशान लगते रहे हैं। इसे देखते हुए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय अब इस दिशा में अपने स्तर पर विस्तृत शोध रिपोर्ट तैयार करा रहा है।

इसके लिए दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, अहमदाबाद, लखनऊ, हैदराबाद एवं आगरा सहित देश के 20 प्रमुख शहरों का चयन किया गया है।

प्रदूषण से बचाव के तरीके

सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को बेहतर किया जाए, ताकि निजी वाहनों की संख्या कम हो।

किस क्षेत्र में किस तरह का प्रदूषण ज्यादा है उसके आधार पर निपटने के उपाय हों।

बड़े पैमाने पर प्रदूषण के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया जाए।

कचरा निस्तारण और सीवेज ट्रीटमेंट प्रणाली चुस्त की जाए।
सड़कों पर जमी धूल की नियमित सफाई हो। नदी को साफ करने के लिए ठोस उपाय हों।

बिना ढके मिट्टी, बालू, सीमेंट या कूड़ा आदि ले जाने वाले वाहनों पर सख्ती से कार्रवाई हो।

प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों की नियमित सघन जांच कर कार्रवाई की जाए।

प्रदूषण नियंत्रण में मददगार साबित होने वाले पेड़-पौधों की संख्या बढ़ाई जाए।

वायु प्रदूषण बढ़ने पर घर के अंदर रहें या मास्क अथवा नाक पर रूमाल आदि बांधकर निकलें।

प्रदूषण स्तर चरम पर होने पर सुबह की सैर से परहेज करें।

एयर व वाटर प्यूरीफायर आदि का भी प्रयोग किया जा सकता है।
प्रदूषण नियंत्रण के एनजीटी व सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन हो।